Thursday, May 21, 2020

उतरत चइतवा हे बाबा ...

ई बात जेकरा न बुझात होई ,उ ना समझ सकेला ,आग विवाह में जवन पारम्परिक गीत क प्रचालन रहे ,धीरे धीरे ओकर लोप होकल जा रहल बा ,काहे से की विवाह के प्रक्रिया में जवन परिवर्तन हो रहल बा ,ओकरा संगे संगे उ सब करमट आ ओकरा से जुडल सब बात बतकही ,रीतिरिवाज ,आ जवन टोटका सब अब पीछे छुटत बा .....
उतरत चइतवा हो बाबा  ,चढ़ल बैइसाख  ...देस पैसी.खोजिह हे बाबा ,पढ़ल दमाद ....वन पैसी कतिह् हो बाबा ...हरियर बांस .....| ये गीत से इ बात के समझे के बा कि...

Thursday, April 2, 2020

कवने खोतवा में लुकाई

आज इहे विडंबना बा कि जवन प्राणी विना कवनो रोक टोक के जेहर मन करे ओहरे घूमते रहलन ,ओकरा पर समय अइसन चलल की पब्न्दिये लग गईल ,ओकर ठिकाना अब सिमट के रह गईल बा ,जब बीमारी के मार पडल बा उ अब बेकारी में जरुरे बदल जाई हो बाबु ,सब ओर हाहाकार मचल बा ,बैचैनी बा ,आ खुछु बुझाते नइखे .....
ये बात में सचाई लउकत बा कि इ दुर्दशा के भोगे वाला उहे जन बा जेकरा उपर कोनो छत नइखे ,जे महल में बा ,अटारी में बा ,खपरैल में बा ,आ मट्टी के घर में बा उ टी बचलो बा ,लेकिन जेकरा उपर छपर नइखे उ कवने खोता में जाई ...
हमनी के जब छोट रहली त उ कहनी बड़ा सुनी जा कि....का खाई ,का पीही ,का लेके परदेश जाई .....
इस जबन बात हो रहल बा उ इ महामारी करोना के बाद उ गरीब के दुर्दशा के कहत बा कि न ओकरा केने घरे बा ,न कुछ खही के बची ,आ ना कवनो सतुआ आ चुडा बची की जवना के लेके उ बाहर कमाए जाई .....
जब इ महामारी फैलत बा ,त रही तबो रोआई,आ जाई तबो रोअई ....
हमनी जब छोटप् न  में अपना गावं के उतर किनारे नदी पर बैर बीने जाई तब ओकरा में कवनो कवनो बईर के पेड़ पर पिअरकी रंग के लम्बा लम्बा लतर नियन फैलल लउके,त ओह पेड़ के बईर ना खाई कोई ....ओकरा में कुछ चलाक बने वाला कह कि इ पिअरका लत्रवा के हरिअर पेड़ पर डाल देला से ,उ पेड़ वा सुखा जाला,आ ओकरा पर बईर ना अवे ...कवनो कवनो आपन करतब देखावे लागे...सचो में उ पिअरका एगो महामारी नियन समूचे हरिअर पेड़ वा के अपना कब्जा में ले लेत रहे ....आ बाद में उ समझ की सुखाइए जात रहे ...ना ओकरा में पती रहे कि कवनो पक्षी के छाया दे ..आ न कवनो फले रहे .... आ एहू तरे कवनो खोता भी ना लौके...
इहे हाल देश में बा कि कोनो जड़ एकरा में आपन विष फैला देले बा ...आ गरीब पर आफत आवे वाला बा ..
न ओकरा अब रोजी बची ,न रोजगार ..आ खाए के मची हाहाकार ...ऐसे कि जेकर जिनगी रोज कमाए ,आ खाए पर टिकल बा ,अब ओही के गर्दन भी फसल बा .....

जयदेव 

Saturday, March 28, 2020

गौरैया क गीत आ कउआ के कावं

एगो बात के ध्यान  रौउआ लोगन देत बानी की ना  ,हमनी के बचपन में एगो चिडई डाली ,मुरेरी पर हमेशा चहचहात रहे ,जवने क नाम गौरिया रहे, आज गौरैया गावं छोड़ के चल देले बाड़ी सन,  वोही में एगो नर होखे त एगो मादा .....जवन नर होखे ओकरा के गौरा आ मादा के गौरैया कहल जात रहे , हमनी अगर बचपन में कौनो गोरैया के चुपके से पकड़ लिही त ,ओकरा के अलता के लाल रंग लगा के छोड़ देत रहली ,आ जब उ दुसरे दिन फिर कबो आवे त  ओकरा में लाल रंग देख आपन अधिकार जमावत रहली ...आज इ बात के दुःख बा कि न उ गौरैया बाड़ी सन, ना उ बचपन के गौरया संगे खेले बा .....ओहू में कवनो कवनो गौरया देखे में तनी जंगली पंक्षी नियन लग सन..आ कवनो पुरान लाग सन त ओकरा के हमनी भूतनी चिढ़ी कहि..आ ओकरा से डर भी लागें ,उ गौरया हमेशा बबूल के पेड़ पर लउकत रहली सन.....
वही दूसर ओर कौआ भी हमनी के छत पर बैठ के कावं कावं करत रह ल सन , आज इ दुनो के ना रहला से एकदम सन्नाटा नियन हो गईल बा ,पहिले जब मुंडेर पर कौआ टर टर करे त घरे के लोगन कह कि तोहार ममा आवत बाडन ,जल्दी से हलुआ बनवाव ,एक तरह से इ कउअवा कोई हीतगन के आवे के सन्देश देत रहल सन ,कबो कबो ओहनी के बोलल सहिये हो जाये ,इ त उ पंक्षी पर एगो विश्वास रहे ...वोही में कबो कबो एक दम से करिया रंग के कौआ आ के मुरेरी पर बैठ जाए त ,हमनी ओके डोम कौआ कहीं...ओकरा के देखते "डोम कउआ ,डोम कउआ बसुरी बजाव ,राजा के लइका के तिलक चढ़ाव " कहे लागी | आज हमनी के इ चिंता क विषय बा की अब कौनो कउ आ नइखन लउकत ...| उ कौआ के महत्व त सालो भर रहे लेकिन कुआर के महिनाभर त ओकर महत्व एकदम से बढ़ जाये ..पितर पक्ष में त जब पिंडा पडला के बाद खाना के तीन हिस्सन में बटला पर ,एगो हिसा उहे कउव्न    के  दियात रहे ,आ कहाये की पितृ लोग के पास उ भोजन के अंश पहुचं जाये ...आज त उ पितृ पक्ष में कउआ लउकत नइखन सन..जेसे इ परम्परा के खाली ओहनी के ना रहला पर निभावल जात बा ....इ कौआ अब बिलुप्त हो गइल सन...आ एही के संगे एगो परम्परा भी संकट में पडल बा .....

जयदेव ...

Thursday, March 26, 2020

करौना क ढोंग

गोड़ लागत तानी
आज दुनिया थम गईल बा ,इ जवन किरौन्वा क महामारी जब से आईल बा ,पुरे जहाँ के लोग एक दम से व्याकुल बानअ  जा |कोई के  बुझाते नइखे की एकरा में का जतन होके के चाही ,लेकिन मय दुनिया के डक्टर साहब जवन इलाज बतावत बानी जा ,ओकरा में खाली इहे ध्यान होखे के चाही की जे भी लोग आपन आस पास बाड़े उनसे एगो दुरी रखल जरूरी बा |
गावं देहात के लोगन आज के ईह जुग में भी आपन अलगे इलाज खोजत बा ,कोई कहत बा कि रामायण के बाल कांड के अध्याय वाला किताब में राम जी के बाल निकलता ,त केहू कपूर आ लवंग के जड़ी बान्हे के कहत बा ,केतना इदमी त जंतर माला पहिन के घुमत बाड़े की किरौना महामारी से बच जाईल जाई ,आ केहू केहू त कपूर बाती जरावत बा ,त केहू देवी के बोलावत बा ......लेकिन इ लोग के विचार के सम्मान बा ,लेकिन इ कहे में तनिक संकोच नइखे कि इ सब अंधविश्वास बा ,आज जबन सही बात बा ओकरा के मनले से ही सबकर भलाई लौकत बा |
पाहिले भी गावन में येही तरे महामारी आवे त लोग आपन आपन जोग जगावे में जान गवां देत रहलन ,कोई महामारी के भगवती कहे,त कोई देवी देवता के प्रकोप बतावे ,इ कहे में तनिका संकोच नइखे कि आज भी लोग करौना महामारी के देवीय प्रकोप मानत बाड़े ....अब इ सब से आगे बड़े के चाही ,झूठ वे भरम में ना आवे के बा ..जवन डक्टर लोग कहे,ओकरा के अपनावे के बा तबे सबके भलाई बा ...जननी लोग

जयदेव 

विचार क अचार

का कहल जाये ,इ त बुझात नइखे ,मगर जवना से देश में एगो हवा चलल बा ओकरा से भारत देश के लोगन क मिजाज और मन दुनो बदले वाला बा ,जहवां प्रश्न ये बात के बा की इ देश गावं ,गरीब और गाँधी के समेट के चले वाला बा ,इ देश के खूबसूरती क ईगो नमूने ह ,गावं जवन बा उ हमरा नजर में ईगो विचारधारा के प्रतीक हो जवना के दक्षिणपंथ कहल जाला ,एकरा के अईसे समझी कि गावं आज भी पुरनका रीतिरिवाज आ आडम्बर के लेके चलेला ,जवन एक प्रकार से रुदिवादी सोच के बनवले बा ,इहो सही बा कि आज के प्रगतिशील जग में एकर बुराई बा ,लेकिन जवन कुछ लाभ बा ,ओकरा के इंकार नाही कईल जा सकेला ,येही पुरनका व्यवस्था के बनावे आ बचावे वाले लोग दक्षिण पंथी कह ला ले ...
आब बात गरीब के ....गरीबी टी हमनी देश में पहिलही से बा ,आ गरीबी पर बहस करे वाला ,आ गरीबन के बारे में विचार देबे वाला येह देश में बामपंथी कहला ले लोगन ...जवन बात बा की उ लोग देश में परिवर्तन के संगे खड़ा बाड़े लोग ...वोहू में कुछ अमूल चुल बदलाव ले आवल चाहत हुआन...इ बदलाव के बात करे वाला बाम विचार से परभावित बाड़े लोग ..
आ जब गाँधी के बात होई तब .पूर्णता के बात होखे लागी...गाँधी इ दुनो विचार के संगे खड़ा बाड़े ..जे गावं के खूबसूरती भी चाहत बा और गरीबन के दुर्दशा में बदलाव भी ....
ऐसे हमनी सब के इ तीनो से साथ समागम करे के होई ,तबे देश के मस्तक उपर उठी ...

जयदेव