आज इहे विडंबना बा कि जवन प्राणी विना कवनो रोक टोक के जेहर मन करे ओहरे घूमते रहलन ,ओकरा पर समय अइसन चलल की पब्न्दिये लग गईल ,ओकर ठिकाना अब सिमट के रह गईल बा ,जब बीमारी के मार पडल बा उ अब बेकारी में जरुरे बदल जाई हो बाबु ,सब ओर हाहाकार मचल बा ,बैचैनी बा ,आ खुछु बुझाते नइखे .....
ये बात में सचाई लउकत बा कि इ दुर्दशा के भोगे वाला उहे जन बा जेकरा उपर कोनो छत नइखे ,जे महल में बा ,अटारी में बा ,खपरैल में बा ,आ मट्टी के घर में बा उ टी बचलो बा ,लेकिन जेकरा उपर छपर नइखे उ कवने खोता में जाई ...
हमनी के जब छोट रहली त उ कहनी बड़ा सुनी जा कि....का खाई ,का पीही ,का लेके परदेश जाई .....
इस जबन बात हो रहल बा उ इ महामारी करोना के बाद उ गरीब के दुर्दशा के कहत बा कि न ओकरा केने घरे बा ,न कुछ खही के बची ,आ ना कवनो सतुआ आ चुडा बची की जवना के लेके उ बाहर कमाए जाई .....
जब इ महामारी फैलत बा ,त रही तबो रोआई,आ जाई तबो रोअई ....
हमनी जब छोटप् न में अपना गावं के उतर किनारे नदी पर बैर बीने जाई तब ओकरा में कवनो कवनो बईर के पेड़ पर पिअरकी रंग के लम्बा लम्बा लतर नियन फैलल लउके,त ओह पेड़ के बईर ना खाई कोई ....ओकरा में कुछ चलाक बने वाला कह कि इ पिअरका लत्रवा के हरिअर पेड़ पर डाल देला से ,उ पेड़ वा सुखा जाला,आ ओकरा पर बईर ना अवे ...कवनो कवनो आपन करतब देखावे लागे...सचो में उ पिअरका एगो महामारी नियन समूचे हरिअर पेड़ वा के अपना कब्जा में ले लेत रहे ....आ बाद में उ समझ की सुखाइए जात रहे ...ना ओकरा में पती रहे कि कवनो पक्षी के छाया दे ..आ न कवनो फले रहे .... आ एहू तरे कवनो खोता भी ना लौके...
इहे हाल देश में बा कि कोनो जड़ एकरा में आपन विष फैला देले बा ...आ गरीब पर आफत आवे वाला बा ..
न ओकरा अब रोजी बची ,न रोजगार ..आ खाए के मची हाहाकार ...ऐसे कि जेकर जिनगी रोज कमाए ,आ खाए पर टिकल बा ,अब ओही के गर्दन भी फसल बा .....
जयदेव
ये बात में सचाई लउकत बा कि इ दुर्दशा के भोगे वाला उहे जन बा जेकरा उपर कोनो छत नइखे ,जे महल में बा ,अटारी में बा ,खपरैल में बा ,आ मट्टी के घर में बा उ टी बचलो बा ,लेकिन जेकरा उपर छपर नइखे उ कवने खोता में जाई ...
हमनी के जब छोट रहली त उ कहनी बड़ा सुनी जा कि....का खाई ,का पीही ,का लेके परदेश जाई .....
इस जबन बात हो रहल बा उ इ महामारी करोना के बाद उ गरीब के दुर्दशा के कहत बा कि न ओकरा केने घरे बा ,न कुछ खही के बची ,आ ना कवनो सतुआ आ चुडा बची की जवना के लेके उ बाहर कमाए जाई .....
जब इ महामारी फैलत बा ,त रही तबो रोआई,आ जाई तबो रोअई ....
हमनी जब छोटप् न में अपना गावं के उतर किनारे नदी पर बैर बीने जाई तब ओकरा में कवनो कवनो बईर के पेड़ पर पिअरकी रंग के लम्बा लम्बा लतर नियन फैलल लउके,त ओह पेड़ के बईर ना खाई कोई ....ओकरा में कुछ चलाक बने वाला कह कि इ पिअरका लत्रवा के हरिअर पेड़ पर डाल देला से ,उ पेड़ वा सुखा जाला,आ ओकरा पर बईर ना अवे ...कवनो कवनो आपन करतब देखावे लागे...सचो में उ पिअरका एगो महामारी नियन समूचे हरिअर पेड़ वा के अपना कब्जा में ले लेत रहे ....आ बाद में उ समझ की सुखाइए जात रहे ...ना ओकरा में पती रहे कि कवनो पक्षी के छाया दे ..आ न कवनो फले रहे .... आ एहू तरे कवनो खोता भी ना लौके...
इहे हाल देश में बा कि कोनो जड़ एकरा में आपन विष फैला देले बा ...आ गरीब पर आफत आवे वाला बा ..
न ओकरा अब रोजी बची ,न रोजगार ..आ खाए के मची हाहाकार ...ऐसे कि जेकर जिनगी रोज कमाए ,आ खाए पर टिकल बा ,अब ओही के गर्दन भी फसल बा .....
जयदेव
No comments:
Post a Comment