Saturday, March 28, 2020

गौरैया क गीत आ कउआ के कावं

एगो बात के ध्यान  रौउआ लोगन देत बानी की ना  ,हमनी के बचपन में एगो चिडई डाली ,मुरेरी पर हमेशा चहचहात रहे ,जवने क नाम गौरिया रहे, आज गौरैया गावं छोड़ के चल देले बाड़ी सन,  वोही में एगो नर होखे त एगो मादा .....जवन नर होखे ओकरा के गौरा आ मादा के गौरैया कहल जात रहे , हमनी अगर बचपन में कौनो गोरैया के चुपके से पकड़ लिही त ,ओकरा के अलता के लाल रंग लगा के छोड़ देत रहली ,आ जब उ दुसरे दिन फिर कबो आवे त  ओकरा में लाल रंग देख आपन अधिकार जमावत रहली ...आज इ बात के दुःख बा कि न उ गौरैया बाड़ी सन, ना उ बचपन के गौरया संगे खेले बा .....ओहू में कवनो कवनो गौरया देखे में तनी जंगली पंक्षी नियन लग सन..आ कवनो पुरान लाग सन त ओकरा के हमनी भूतनी चिढ़ी कहि..आ ओकरा से डर भी लागें ,उ गौरया हमेशा बबूल के पेड़ पर लउकत रहली सन.....
वही दूसर ओर कौआ भी हमनी के छत पर बैठ के कावं कावं करत रह ल सन , आज इ दुनो के ना रहला से एकदम सन्नाटा नियन हो गईल बा ,पहिले जब मुंडेर पर कौआ टर टर करे त घरे के लोगन कह कि तोहार ममा आवत बाडन ,जल्दी से हलुआ बनवाव ,एक तरह से इ कउअवा कोई हीतगन के आवे के सन्देश देत रहल सन ,कबो कबो ओहनी के बोलल सहिये हो जाये ,इ त उ पंक्षी पर एगो विश्वास रहे ...वोही में कबो कबो एक दम से करिया रंग के कौआ आ के मुरेरी पर बैठ जाए त ,हमनी ओके डोम कौआ कहीं...ओकरा के देखते "डोम कउआ ,डोम कउआ बसुरी बजाव ,राजा के लइका के तिलक चढ़ाव " कहे लागी | आज हमनी के इ चिंता क विषय बा की अब कौनो कउ आ नइखन लउकत ...| उ कौआ के महत्व त सालो भर रहे लेकिन कुआर के महिनाभर त ओकर महत्व एकदम से बढ़ जाये ..पितर पक्ष में त जब पिंडा पडला के बाद खाना के तीन हिस्सन में बटला पर ,एगो हिसा उहे कउव्न    के  दियात रहे ,आ कहाये की पितृ लोग के पास उ भोजन के अंश पहुचं जाये ...आज त उ पितृ पक्ष में कउआ लउकत नइखन सन..जेसे इ परम्परा के खाली ओहनी के ना रहला पर निभावल जात बा ....इ कौआ अब बिलुप्त हो गइल सन...आ एही के संगे एगो परम्परा भी संकट में पडल बा .....

जयदेव ...

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